व्यभिचारी शिक्षक
*व्यभिचारी शिक्षक*
ज्ञानार्थ पाठशाला में,
शिक्षक ऐसे भरे पड़े हैं।
स्वार्थ अर्थ का मन में,
देह में काम भरे बैठे हैं।
ज्ञान शलाखा हाथ लिए,
बनते हैं गुरु पिता समान।
मगर वासनारत् नयन तकें ,बच्चियों के भीतरी अंग।
कभी प्यार से सहलाते,
कभी दण्ड की लेते आड़
।इसी बहाने बार-बार वे,
छेड़ते रहते अँग-प्रत्यंग।
कोई बच्ची जो मन भाए,
डरा-धमका पास बुलाएँ।
पास करवाने का देकर
लालच,देह-शोषण करते
जाएँ।
शिक्षक संग शिक्षिकाएँ भी,शामिल घ्रणित कृत्य में,बलात्कारी शिक्षकों का,देतीं खुलकर साथ।
गिर गया शिक्षा का स्तर,
विद्यालय बने अय्याश के
धाम,मदिरापान खुलकर
करने लगे शिक्षक और
शिष्य।
शर्मसार ज्ञान की देवी,
जिससे माँगते वरदान।
मगर शिक्षा का नित्य ही
करने लगे हैं व्यापार।
डा.नीलम
Gunjan Kamal
09-Sep-2023 03:36 PM
👏👌
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madhura
05-Sep-2023 11:17 PM
Amazing
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
05-Sep-2023 08:13 PM
Dr sahab positive likh dijiye teacher ke liye
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